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Normalisation Explained: परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन क्या है ?

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27-Nov-2025, 03:50 am    59 Views

Normalisation Explained: परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन क्या है ?

छात्रों का सबसे बड़ा सवाल होता है कि क्या नॉर्मलाइजेशन में सभी को बराबरी के मौके नहीं मिल पाते हैं? नॉर्मलाइजेशन का मतलब क्या है? मान लीजिए दो शिफ्ट में एग्जाम हुए।
एक शिफ्ट में दिया गया प्रश्नपत्र आसान था और दूसरे में कठिन। ऐसे में पहले शिफ्ट वाले स्टूडेंट के ज्यादा नंबर आ सकते हैं और दूसरे में कम। इसी नंबर को ध्यान में रखते हुए कटऑफ जारी होती है।
ये कटऑफ निकालने के लिए जिस प्रक्रिया/ फॉर्मूला को अपनाया जाता है, उसी को नॉर्मलाइजेशन कहते हैं।

डिमांड और इंफ्रास्ट्रक्चर बड़ा फैक्टर है?

ऐसे विकसित देशों में नॉर्मलाइजेशन ज्यादा सफल है, जहां डिमांड कम है और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी नहीं है। कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट (CBT) के लिए अपने देश में 400 से 500 सेंटर ढूंढना भी एक चुनौती है।
ग्रामीण इलाकों में तो कनेक्टिविटी की समस्या है। ऐसे में कहीं पर पेपर समय पर शुरू नहीं होते, तो कहीं पर तकनीकी समस्याएं आती हैं। इन सब मसलों का असर एग्जाम पर पड़ता है।

पर्सेंटाइल क्या होता है?

पर्सेंटाइल बताता है कि आपका लेवल क्या है? पर्सेंटेज और पर्सेंटाइल में बड़ा अंतर है। अगर आपको 90% मार्क्स मिले हैं, कुल नंबर 400 है तो 90% के हिसाब से आपको 360 नंबर मिले हैं। अगर रिजल्ट 90 पर्सेंटाइल का है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपका स्कोर 360 ही होगा।
पर्सेंटाइल का मतलब होता है कि आपको कितने छात्रों से ज्यादा नंबर मिले हैं। जैसे अगर आपका पर्सेंटाइल 90% है, तो इसका मतलब हुआ कि आपने 90% उम्मीदवारों से ज्यादा मार्क्स हासिल किए हैं। हो सकता है कि आपको 300 नंबर ही मिले हों, लेकिन 90% छात्र उस स्कोर से नीचे हैं। यह भी आसान फॉर्म्युला नहीं है।


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